वासुदेवशरण अग्रवाल जीवनकाल : 1904-1967 ई०) 12 class UP Board 2025

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वासुदेवशरण अग्रवाल जीवनकाल : सन् 1904-1967 ई०) 12 class UP Board 2025

हेल्लो दोस्तो आज हम 12 class UP Board परीक्षा के लिए जीवन परिचय 2025 में पेपर में जरूर शामिल हैं वासुदेवशरण अग्रवाल जीवनकाल : सन् 1904-1967 ई०) 12 class UP Board 2025

जीवन-परिचय

 

डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म सन् 1904 ई० में मेरठ जनपद के खेड़ा ग्राम में हुआ था। इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे। अतः इनका बाल्यकाल लखनऊ में ही व्यतीत हुआ। यहीं इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा भी प्राप्त की। इन्होंने ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। ‘लखनऊ विश्वविद्यालय’ ने ‘पाणिनिकालीन भारत’ शोध-प्रबन्ध’ पर इनको पी एच० डी० को उपाधि से सम्मानित किया। यही से इन्होंने डी० लिट् की उपाधि भी प्राप्त की। इन्होंने पालि, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति और पुरातत्त्व का गहन अध्ययन किया और इन क्षेत्रों में उच्चकोटि के विद्वान् माने जाने लगे। ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भारती महाविद्यालय में ‘पुरातत्त्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग’ के अध्यक्ष रहे।

 

हिन्दी के इस महान विद्वान का 1967 ई. में निधन हो गया

 

गया।

 

लेखक-परिचय : एक दृष्टि में

 

नाम वासुदेवशरण अग्रवाल।

 

जन्म : सन 1904 ई०।

 

जन्म-स्थान : ग्राम- खेड़ा (मेरठ)।

 

शिक्षा

 

: एम0ए0।

 

भाषा-शैली

 

: भाषा-विषयानुकूल, प्रौढ़ और परिमार्जित खड़ीबोली।

 

शैली-विचारात्मक, गवेषणात्मक, व्याख्यात्मक।

 

प्रमुख रचनाएँ

 

निधन

 

पृथिवीपुत्र, भारत की एकता, कल्पवृक्ष, माता भूमि।

 

: वर्ष 1967 ई.

 

साहित्य में स्थान सुललित निबन्धकार, टीकाकार और साहित्यिक ग्रन्थों के कुशल सम्पादक के रूप में प्रसिद्ध।

 

साहित्यिक परिचय

 

डॉ० अग्रवाल लखनऊ और मथुरा के पुरातत्त्व संग्रहालयों में निरीक्षक, ‘केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग’ के संचालक और ‘राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली’ के अध्यक्ष रहे।

 

डॉ० अग्नवाल ने मुख्य रूप से पुरातत्त्व को ही अपना विषय बनाया। इन्होंने प्रागैतिहासिक, वैदिक तथा पौराणिक साहित्य के मर्म का उद्घाटन किया और अपनी रचनाओं में संस्कृति और प्राचीन भारतीय इतिहास का प्रामाणिक रूप प्रस्तुत किया। जायसी के ‘पद्मावत’ की संजीवनी व्याख्या और बाणभट्ट के ‘हर्षचरित’ का सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत करके इन्होंने हिन्दी साहित्य को गौरवान्वित किया। डॉ० अग्रवाल अनुसन्धाता, निबन्धकार और सम्पादक के रूप में भी प्रतिष्ठित रहे।

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